आज फिर बोल पड़ा कलम, कहा खो गया बचपन।
गलियों में खुले सांड की तरह भागा करते थे,
किसी से भी लड़ जाया करते थे,
स्कूल ना जाने के कई बहाने बनाया करते थे,
रो-रो कर सब को मनाया करते थे,
आज फिर बोल पड़ा कलम, कहा खो गया बचपन।
पापा के स्कूटर पर, लोंगद्राईव पर जाया करते थे
मां से खूब पिटाई खाया करते थे
1 रुपयं के लिए सुबह दूध लाया करते थे
और उस रुपयों को जेब मे रख, सेठ बन जाया करते थे,
आज फिर बोल पड़ा कलम, कहा खो गया बचपन।
गुस्सा होने पर कट्टा-अब्बा कि, शहनाई बजाया करते थे,
कंचे और लट्टू खेलने में, खाना भूल जाया करते थे,
क्रिकेट के लिए सुबह 4 बजे जग जाया करते थे,
और दोस्तो के घर जाकर चिल्लाया करते थे,
आज फिर बोल पड़ा कलम, कहा खो गया बचपन।
वो भी क्या दिन थे, स्कूल में जब लम्बी चेन बनाते थे,
सब को बरफ - पानी में जमाते थे,
एक आजाद पक्षी की तरह कहीं भी उड़ जाते थे,
अब ना लौटेगा ये बचपन,
आज फिर बोल पड़ा कलम, कहा खो गया बचपन।
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